Friday, June 18, 2010

देहरादून अब नाम का बच गया

देहरादून। हां, हां देहरादून शिवालिक रेंज से लगा तराई का यह शहर शदियों से ताज़ी हवा और ठन्डे पानी कि चाहत रखने वालो को लुभाता रहा है। लेकिन अब देहरादून किसी को लुभा नहीं रहा बस डरा रहा है, ७० के दशक से शुरू हुए उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के बाद उत्तराँचल नाम से ९ नवम्बर २००० को नए राज्य का गठन हुआ। नेताओ और अधिकारियो को पहाड़ में नहीं जाना था इसलिए छल से देहरादून को अस्थाई राजधानी घोषित करा दिया, वे जानते थे कि लोग बाद में राजधानी बदल जाने का भरोसा रखेंगे और हल्ला नहीं काटेंगे, हुआ भी यही उत्तराखंड कि सारी आन्दोलनकारी ताकते यह सोच कर चुप रही कि बाद में पहाढ़ में स्थायी राजधानी बनाई जाएगी, लेकिन एसा न तो होना था और ना हुआ, अब दस साल बाद देहरादून सी सूरत इतनी ख़राब हो चुकी है जितनी पहले कभी नहीं हुई। आज भी लोग देहरादून को शांति और सुकून के शहर के रूप में जानते है न कि उत्तराखंड कि राजधानी के रूप में. लेकिन आपको बता दू अब देहरादून सुकून का शहर नहीं उत्तराखंड कि राजधानी है, राज्य बनने के बाद लाखो लोग बहार और अन्दर से यहाँ आ चुके है। निगम कि ज्यादातर भूमि पर अवैद कब्ज़ा हो चूका है, हर और लालबत्ती लगी गाड़िया दोड़ रही है, जहा पहले गलियों में लोग सुकून से टहलते थे अब वह वहां दनदनाते है, अपराध इतने बाद चुके अकेले देहरादून में एक साल में ३००० से ज्यादा वहां चोरी हो गए, सरकार और कालोनी बनाने वालो ने विकास के नाम पर दस साल में २०००० हजार पढ़ काट डाले है। शहर का प्रदुसान बढ़ता जा रहा है, त्रेफ्फिक सिस्टम चरमराया हुआ है, आम और लीची के बगीचे कब के काट डाले गए, अब तो जहा देखो लोग है घर है, धुवा है वहां है लेकिन वो सुहूँ वाली बात नहीं है, पहले देहरादून को दो बार सोने वालो का शहर कहा जाता था मतलव आर्मी के रीतायारद लोग आदत के कारन सुबह ४.०० बजे उठते घुमने जाते फिर लौटकर सो जाते, लेकिन अब आप सुकून से एक बार भी नहीं सो सकते मतलव देहरादून बदल गया है।

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